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जगद्गुरु रामानंदाचार्यजी द्वारा वसुंधरा डिंडी: पर्यावरण संरक्षण के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा
जब विश्व जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय ह्रास जैसी गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है, तब जगद्गुरु रामानंदाचार्यजी महाराज ने एक ऐसी अद्वितीय पहल की है, जो आध्यात्मिक भक्ति और पर्यावरणीय जिम्मेदारी को सुंदर रूप से एक सूत्र में बाँधती है — “वसुंधरा डिंडी” । हर वर्ष, हजारों भक्त निजधाम (ननीजपीठ) तक की लंबी पदयात्रा में सहभागी होते हैं।इस यात्रा का उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि अत्यंत जागरूकता से भरा है — पर्यावरण संरक्षण, आध्यात्मिक जागरण, और सामाजिक सद्भावना का संदेश जन-जन
Jagadguru Narendracharyaji
15 अक्टू॰2 मिनट पठन


रामानंदाचार्य से नरेंद्राचार्यजी तक: आधुनिक युग में भक्ति परंपरा का निरंतर प्रवाह
14वीं शताब्दी के संत जगद्गुरु रामानंदाचार्य से लेकर वर्तमान कालीन जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी महाराज तक की यात्रा — भक्ति की अमर परंपरा का प्रमाण परिचय 14वीं शताब्दी के संत जगद्गुरु रामानंदाचार्य से लेकर आज के जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी महाराज तक की यह यात्रा भक्ति की उस निरंतर प्रवाहित जीवनशक्ति का साक्षात प्रमाण है, जो सदियों बाद भी उतनी ही सजीव और प्रभावशाली है।यह लेख इस बात की खोज करता है कि रामानंदाचार्यजी द्वारा स्थापित भक्ति का सार आज भी किस प्रक
Jagadguru Narendracharyaji
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जगद्गुरु रामानंदाचार्य
जगद्गुरु रामानंदाचार्य — जिन्हें सामान्यतः रामानंद के नाम से जाना जाता है — 14वीं शताब्दी के एक महान वैष्णव संत, कवि और समाज-सुधारक थे, जिनकी भक्ति-सिद्धांतों ने उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा दी।रामानंदी संप्रदाय के संस्थापक के रूप में, उन्होंने व्यक्तिगत भक्ति और सामाजिक समरसता पर विशेष बल दिया, जिससे जाति, लिंग और समाज की सीमाएँ मिट गईं। आधुनिक परंपरा से सेतु आज की आध्यात्मिक परंपरा — जो आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य से आरंभ होकर जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार
Jagadguru Narendracharyaji
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