

ध्येय और दृष्टिकोण
रामानंदाचार्यजी समय की दृष्टि
सर्वोच्च सत्ता ने मानवता को दो अनमोल उपहार दिए हैं — समय, जिसे जीवन कहा जाता है, और मानव शरीर। जगद् गुरू रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी के अनुसार, यदि इन दोनों का बुद्धिमानी से नियोजन और उपयोग किया जाए, तो मानव रूप के माध्यम से अनगिनत सेवा और कल्याण के कार्य किए जा सकते हैं।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनका जीवन मार्ग दूरगामी, गतिशील और सुव्यवस्थित रहे, जगद्गुरु ने 1997 में एक विस्तृत वार्षिक कैलेंडर तैयार करना शुरू किया। हर वर्ष, वे इसी प्रकार का कैलेंडर तैयार करते हैं और अपनी दैनिक दिनचर्या को इस कार्यक्रम के अनुसार कड़ाई से निभाते हैं। इस कैलेंडर में पूरे 365 दिनों के लिए उनकी गतिविधियों का सूक्ष्म और सुव्यवस्थित कार्यक्रम शामिल होता है। आगामी वर्ष का कैलेंडर हर वर्ष 21 अक्टूबर को अनुयायियों के लिए उपलब्ध कराया जाता है, नए वर्ष की शुरुआत से पहले।
रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य जी का ध्येय और दृष्टिकोण
गरीबों और पीड़ितों के प्रति असीम करुणा, सत्यनिष्ठा, और निःस्वार्थ सेवा भावना से ओतप्रोत स्वामी नरेंद्राचार्य जी ने यह सिद्धांत अपनाया:
“दीन-दुबलों की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है।”
दूरदर्शी दृष्टिकोण, समाज के प्रति संवेदनशीलता और धर्म के प्रति गहरी निष्ठा के साथ उन्होंने यह प्रतिपादन किया कि ,
सनातन वैदिक धर्म और प्राचीन भारतीय संस्कृति को संरक्षित और संवर्धित करना अत्यावश्यक है, क्योंकि वही सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रेरणा का सर्वोच्च स्रोत है।
उन्होंने दृढ़ता से कहा कि केवल हिंदू संस्कृति में ही ऐसा सामर्थ्य है कि वह दूसरों को ज्ञानरूपी अमृत पिला सके। इसी विश्वास के साथ उन्होंने धर्म और अध्यात्म का कार्य व्यापक रूप से फैलाया।
असाधारण नेतृत्व और सर्वांगीण कार्य
सूक्ष्म नियोजन-कौशल, उत्कृष्ट प्रशासनिक और प्रबंधकीय क्षमता, वास्तुकला में दक्षता, काव्य और लेखन प्रतिभा, प्रभावशाली वक्तृत्व, जीवन-मार्गदर्शन, संगठनात्मक नेतृत्व, धर्मरक्षण, समाज सुधार, तकनीकी प्रावीण्य, पर्यावरण संरक्षण और समाजसेवा जैसे अनेक गुणों के कारण नरेंद्राचार्य जी ने अल्पावधि में ही महाराष्ट्र और गोवा के कोने-कोने तक अपना कार्य फैलाया।
उनकी एक अनूठी परंपरा यह है कि हर वर्ष 21 अक्टूबर (जन्मदिवस) को अगले वर्ष का “कालदर्शन” (वार्षिक कैलेंडर) प्रकाशित होता है, जिसमें साधना की तिथियाँ भी होती हैं। वह दिन वे सदा गहन ध्यान-साधना में व्यतीत करते हैं।
