top of page
Plant Shadow
Ramanandacharyaji (1).png

जगद् गुरू
रामानंदाचार्य पद पर पट्टाभिषेक 

महंत नरेंद्रदास जी के आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक कार्यों के निरंतर विस्तार को देखते हुए अखिल भारतीय षड्दर्शन आखाड़ा परिषद ने उन्हें वैष्णव परंपरा के आद्य जगद् गुरू
रामानंदाचार्य के उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया।

21 अक्टूबर 2005, प्रभु श्रीराम के पदस्पर्श से पावन हुई अयोध्या नगरी में एक भव्य समारोह में महंत नरेंद्रदास जी का “जगद् गुरू रामानंदाचार्य” के रूप में पट्टाभिषेक (अभिषेक समारोह) संपन्न हुआ।

समारोह में उपस्थित प्रमुख संत एवं प्रतिनिधि:

  • अखिल भारतीय आखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास जी महाराज

  • आखाड़ा परिषद के सभी सदस्य

  • निर्वाणी, निर्मोही, दिगंबर और उनके 18 उप-आखाड़ों के प्रतिनिधि

  • चतुःसंप्रदाय के प्रमुख और सभी वैष्णव खालसों के पदाधिकारी

  • उदासीन, बड़ा उदासीन और निर्मल आखाड़े के प्रमुख संतगण
     

इस दिन से महंत नरेंद्रदास जी “जगद् गुरू रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य” बने — अनंत श्री विभूषित, हिंदू धर्मगुरु, वैष्णव आचार्य और आद्य जगद् गुरू रामानंदाचार्य के पूर्ण अधिकारों के उत्तराधिकारी।

“नाणीजधाम” का जन्म और दक्षिण पीठ की स्थापना
 

इसी ऐतिहासिक दिन नाणीज गाँव का नाम परिवर्तित होकर “नाणीजधाम” हो गया। आद्य जगद् गुरू रामानंदाचार्य के दक्षिण पीठ के रूप में इसका नामकरण हुआ:
 “रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ – नाणीजधाम”

आद्य जगद् गुरू रामानंदाचार्य की तीन प्रमुख पीठें:

  1. श्री मठ – पंचगंगा घाट, वाराणसी (मूल पीठ)

    • पीठाधीश्वर: रामानंदाचार्य रामनरेशाचार्य
       

  2. तुलसीपीठ – चित्रकूट, मध्यप्रदेश

    • पीठाधीश्वर: रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य
       

  3. रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ – नाणीजधाम, महाराष्ट्र

    • पीठाधीश्वर: रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य
       

प्रभु श्रीराम के कार्यों का पुनर्जन्म
(Revival of Shri Ram’s Mission)

 

श्रीराम के अवतारकाल में, धर्ममार्तंड के सुझाव पर उन्होंने एक शूद्र का वध किया था, क्योंकि उस समय वैदिक उपासना का अधिकार केवल ब्राह्मण और क्षत्रियों तक सीमित था। यह कर्म उनके हृदय पर एक शल्य के समान रहा। धर्मरक्षण और धर्मसंवर्धन के लिए ही वे पुनः विक्रम संवत् 1356, माघ कृष्ण सप्तमी (ई.स. 1299) में आद्य जगद् गुरू
 रामानंदाचार्य के रूप में अवतरित हुए। आर्ष ग्रंथों में कहा गया है:

“रामानंदा स्वयं रामः, प्रादुर्भूतो महीतले।”
अर्थ: “स्वयं भगवान श्रीराम ही आद्य जगद् गुरू 
रामानंदाचार्य के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुए।”

सामाजिक सुधार और जातिभेद का अंत

आद्य जगद् गुरू रामानंदाचार्य ने वैदिक सनातन धर्म में जड़ जमा चुकी जाति-पाति और अस्पृश्यता की विषबेल को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए उद्घोष किया —


“जात पात पूछे ना कोई। हरी को भजे सो हरी का होई॥”

अर्थ: “जात-पात का विचार नहीं करना चाहिए; जो हरी का भजन करता है, वही हरी का है।”
 

उन्होंने केवल उपदेश ही नहीं दिया, बल्कि संत कबीरदास, रविदास, सेन नाई, धन्ना जाट, नाभा दास जैसे ब्राह्मणेतर संतों को शिष्य के रूप में स्वीकार किया।
साथ ही संत सुरासुरी और संत पद्मावती जैसी स्त्रियों को भी आत्मोद्धार का अधिकार देकर उन्होंने जाति और लिंग के भेदभाव को समाप्त कर दिया।


धर्मरक्षण में ऐतिहासिक योगदान
 

13वीं शताब्दी में, दिल्ली सल्तनत के शासक मोहम्मद गियासुद्दीन तुगलक के शासनकाल में हिंदुओं का तेजी से इस्लामीकरण किया जा रहा था। इस पर अंकुश लगाने में रामानंदाचार्य जी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।

और आज ऐसा प्रतीत होता है कि जगद् गुरू रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य जी उसी महान कार्य को पूर्णता तक पहुँचाने के लिए पुनः अवतरित हुए हैं।

bottom of page